दिया, उसे उसने अपने कमरे से निकल जाने को कहा, और उसके प्रश्नों का उसने उत्तर नहीं दिया।
जब इस महाराष्ट्र पडित की बारी आई, तब इससे गोविंद चेट्टी ने पूछा कि तुम कहाँ से आए और क्या चाहते हो। इसका उत्तर मिलने पर उसने कहा कि यदि मैं तुम्हारी सघ बातों का ठीक-ठीक जवाब दूँ, तो तुम मुझे क्या दोगे? महाराष्ट्र-गृहस्थ ने कहा कि यदि आप ऐसा करेंगे, तो मैं आपकी कीर्ति को महाराष्ट्र देश-भर में फैलाऊँगा, और यथाशक्ति आपको कुछ दूँगा भी। कुछ देर तक विचार करके चेट्टी ने आगंतुक पंडित के स्वभाव, आचरण और विद्वत्ता आदि की तारीफ़ की। फिर उन्हें वह अपने खास कमरे में ले गया। वहाँ उसने पूछा कि तुम्हारे प्रश्न कहाँ हैं। पंडित ने कहा कि वे हमारी डायरी में लिखे हुए हैं, और वह डायरी हमारे इस बैग के भीतर है। यह सुनकर गोविंद ने चौथाई तख्ते काग़ज़ पर पेंसिल से उन प्रश्नों का जवाब लिखना शुरू किया, और बिना रुके या बिना किसी सोच-विचार के वह अंधाधुंध लिखता ही गया। इस बीच में वह प्रष्टा से कभी सामने पड़ी हुई कौड़ियों को कहता था छुओ; कभी किसी पुस्तक के किसी अक्षर पर कहता था हाथ रक्खो; कभी कुछ करता था, कभी कुछ। और, यह सब करके वह तरह-तरह के चमत्कार दिखलाता जाता
था। अंकों का जोड़ लगवाकर वह बतला देता था कि वह इतना हुआ; या वह अमुक संख्या से कट जाता है; या उसमें