तरफ़ देखकर इच्छा-शक्ति से ही उन्हें जमीन पर गिरा सकता था। परंतु बीच में वह बहुत बीमार हो गया। तब से उसकी
यह शक्ति जाती रही।"
यहाँ सिविलियन साहब का कथन समाप्त होता है। आकाश में लड़के को निराधार ठहरा देख उन्हें जो आश्चर्य हुआ, वह युक्त है। परंतु योग और अध्यात्म-विद्या की महिमा को जो जानते हैं, उनको ऐसी बातें सुनकर कम आश्चर्य होता है। जो लोग पूरे योगी है, वे आकाश में स्वच्छंद बिहार कर सकते हैं। जिनको योग के कुछ ही अंग सिद्ध हो जाते हैं, उनमें भी अनेक अलौकिक शक्तियाँ आ जाती हैं। परंतु ऐसी शक्तियों का दुरुपयोग करना अनुचित और हानिकारक होता है। उनके प्रयोग को दिखाकर खेल-तमाशे न करना चाहिए।
कुछ दिन हुए, कानपुर में एक योगी आए थे। आपका नाम है आत्मानंद स्वयंप्रकाश सरस्वती। कोई दो महीने तक वह गंगा-किनारे रहे थे। वह तैलंग-देश के निवासी हैं। उनके साथ उनका एक चेला भी था। वह सिर्फ़ अपनी देश-भाषा या संस्कृत बोल सकते हैं। संस्कृत में योग-विषय पर उन्होंने दो-एक पुस्तकें भी लिखी है। उनमें से एक पुस्तक कानपुर में छापी भी गई है। उनको आडवर बिल्कुल प्रिय न था। हिंदी न बोल सकने के कारण
उनके यहाँ भीड़ कम रहती थी। तिस पर भी शाम-सुबह बहुत-से पढ़े-लिखे आदमी उनके दर्शनों को जाया करते थे। कानपुर के प्रसिद्ध वकील पंडित पृथ्वीनाथ तक उनके दर्शनों को जाते