रक्खी थी। तिपाई बाँस की थी। नीचे तीनों बाँस अलग-
अलग थे, पर ऊपर वे तीनो एक दूसरे से मिलाकर बाँध दिए
गए थे। उनके उस भाग पर, जो ऊपर निकला था, गद्दी रक्खी
थी। लड़के के हाथ दोनो तरफ़ फैले हुए थे। हाथों के नीचे एक-एक बाँस और था। उसी की नोक पर हाथों की हथेली रक्खी थी। ये दोनों बाँस तिपाई के बाँसों से कुछ लंबे थे। वे नीचे ज़मीन को सिर्फ़ छुए हुए थे, गड़े न थे। लड़के का सिर और उसके कंधे एक काले कपड़े से ढके थे। इस कपड़े को प्रयोक्ता कभी-कभी उठा देता था, जिससे लड़के का चेहरा खुल जाता था, और छाती भी देख पड़ने लगती थी।
"इसके बाद प्रयोक्ता ने तिपाई के तीनो बाँस एक-एक करके धीरे-धीरे खींच लिए। लड़का पूर्वोक्त गद्दी के उपर वैसे ही पालथी मारे हुए, आकाश में बैठा रह गया। उसका आसन जमीन से कोई चार फ़ीट उपर था। उसके हाथ वैसे ही फैले और पूर्वोक्त दोनो बाँसों पर रक्खे हुए थे। इन दो बाँसों की ऊँचाई कोई ६ फीट होगी। हम लोग निर्निमेष दृष्टि से लड़के की तरफ़ देख रहे थे कि प्रयोक्ता 'फ़क़ीर' ने उन दो बाँसों में से भी एक को खींच लिया, और लड़के के एक हाथ को समेटकर छाती पर रख दिया। तब लड़के का सिर्फ़ एक हाथ बाँस पर रह गया। यह देखकर हम लोगों के आश्चर्य की सीमा न रही। क्या बात थी, जिससे वह लड़का, पत्थर की मूर्ति के समान, निश्चल भाव से, आकाश में इस तरह बैठा रह गया? क्यों न वह धड़ाम से नीचे आ गिरा?