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अद्भुत आलाप


साफ करके उसके तीन तरफ़ कनात लगा दी। चौथी तरफ़ उसने परदा डाल दिया। इच्छानुसार परदा डाल दिया जा सकता था और उठा भी लिया जा सकता था। परदे से १५ फ़ीट की दूरी पर देखनेवाले बैठे। तमाशेवाले के साथ एक लड़का था। उसकी उम्र बारह-तेरह वर्ष की होगी।

"जिस विद्या को अँगरेज़ी में मेस्मेरिजम कहते हैं, उसका ठीक-ठीक अनुवाद हिंदी में हम नहीं कर सकते । पर इस विद्या के नाम से सरस्वती के प्रायः सभी पाठक परिचित होंगे। इसके अनुसार जिस व्यक्ति पर असर डाला जाता है, वह असर डालनेवाले के वश में हो जाता है। इसे आत्मविद्या, अध्यात्म-विद्या, वशीकरण-विद्या आदि कह सकते हैं।

"इसी विद्या के नियमों के अनुसार तमाशेवाले ने उस लड़के पर असर डालना शुरू किया (तमाशेवाले को इस से आगे हम प्रयोक्ता के नाम से उल्लेख करेंगे)। कुछ देर तक प्रयोक्ता ने लड़के पर पाश डाले। इतने में वह निश्चेष्ट हो गया। तब प्रयोक्ता ने उसे एक संदूक पर चित लिटा दिया। संदूक़ को उसने पहले ही से क़नात के घेरे के भीतर रख लिया था। फिर उसे उसने एक कपड़े से ढक दिया, और परदे को नीचे गिरा दिया। तमाशे का पहला दृश्य यहाँ पर समाप्त हो गया।

"तीन-चार मिनट के बाद परदा फिर उठा,और दूसरा दृश्य दिखाई दिया। हम लोगों ने देखा, वह लइका मोटे कपड़े की एक गद्दी पर पद्मासन से बैठा है। यह गदी एक तिपाई के ऊपर