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आकाश में निराधार स्थिति


छपकर यहाँ आया। तब उसे पढ़ने का सौभाग्य हिंदोस्तानियों को प्राप्त हुआ! अब इस तमासे का हाल पूर्वोक्त सिविलियन साहब ही के मुँह से सुनिए--

"हिदोस्तान के उत्तर में, नवंबर के शुरू में, जाड़ा पड़ने लगता है। तब जिले के सिविलियन साहब दौरे पर निकलते हैं। मुझे भी हर साल की तरह दौरे पर जाना पड़ा। एक दिन एक पढ़े-लिखे हिंदोस्तानी जमींदार ने आकर मुझसे मुलाक़ात की। उसने कहा कि मैंने एक बड़ा ही आश्चर्यजनक तमाशा देखा है। आत्मविद्या के बल से एक लड़का ज़मीन से चार फ़ीट ऊपर, अधर में, बिना किसी आधार के ठहरा रहता है। इससे मिलते-जुलते हुए तमाशों का हाल मैंने सुन रक्खा था। मैंने सुना था कि मदारी लोग रस्सी को आकाश में फेककर उस पर चढ़ जाते हैं, और इसी तरह के अजीब-अजीब तमाशे दिखलाते हैं। पर मैंने यह न सुना था कि कोई आकाश में भी बिना किसी आधार के ठहर सकता है। इससे इस तमाशे की देखने को मुझे उत्कट अभिलाषा हुई। मेरे हिंदोस्तानी मित्र ने मुझसे वादा किया कि मैं आपको यह तमाशा दिखलाऊँगा।

"१४ नवंबर, १९०४, को मेरे मित्र ने मुझ पर फिर कृपा की। इस दफ़े वह उस तमाशेवाले को भी साथ लेता आया। यह देखकर मैं बहुत खुश हुआ। तमाशेवाले की उम्र चालीस वर्ष से कुछ कम थी। उसने कहा, मैं ब्राह्मण हूँ। जहाँ पर मेरा ख़ेमा था, वहीं, कुछ दूर पर, उसने कोई १२ वर्गफ़ुट जगह