अतएव कोई नहीं कह सकता कि यह बात असंभव, अतएव ग़लत है। आकाश-बिहार करना तो बहुत कठिन है, पर आकाश में निराधार ठहरने का एक-आध दृष्टांत हमने भी सुना है। हमें स्मरण होता है, हमने कहीं पढ़ा है कि कोई गुजरात-देश के
महात्मा ज़मीन से कुछ दूर ऊपर उठ जाते थे, और थोड़ी देर तक निराधार वैसे ही ठहरे रहते थे। पर इस प्रकार की सिद्धियों को दिखलाकर तमाशा करना अनुचित है। योग-साधना तमाशे के
लिये नहीं की जाती। इससे हानि होती है, और प्राप्त से अधिक
सिद्धि पाने में बाधा आती है। हरिदास इत्यादि योगियों ने अपनी
योग-सिद्धि के जो दृष्टांत दिखलाए हैं, वे तमाशे के लिये नहीं,
केवल योग में लोगों काविश्वास जमाने के लिये। तमाशा लौकिक
प्रसिद्धि प्राप्त करने या रुपए कमाने के लिये दिखाया जाता है। पर योगियों को इसकी परवा नहीं रहती। वे इन बातों से दूर
भागते हैं; उनकी प्राप्ति की चेष्टा नहीं करते। परंतु जिन लोगों ने
योग की सिद्धियों की बात नहीं सुनी, वे ऐसे तमाशों को अचंभे
की बातें समझते हैं। ऐसे ही एक तमाशे का हाल हम यहाँ पर
लिखते हैं। यह तमाशा एक सिविलियन (मुल्की अफ़सर) अँगरेज़ का देखा हुआ है। उसकी इच्छा है कि इँगलैंड की अध्यात्म-विद्या-संबंधिनी सभा इसकी जाँच करे। यह वृत्तांत एक अँगरेज़ी मासिक पुस्तक में प्रकाशित हुआ है। तमाशा है इस देश का, पर यहाँ के किसी पत्र या पत्रिका को इसका समाचार नहीं मिला। समाचार गया विलायत। वहाँ से अँगरेज़ी में
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अद्भुत आलाप