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अद्भुत आलाप


उसने बहुत धीरे से दो-चार शब्द कहे। पर उसने क्या कहा, हम लोगों ने नहीं समझा। इतने में उसने अपने दोनो हाथ फैलाए, ओर उठकर उस नाग-बाला को वह आलिंगन करने चला। उसका मुँह पीला पड़ गया था, और आँखें लाल हो गई थीं। उसे इस प्रकार अपनी तरफ़ आते देख नाग-कन्या ने भी अपने बाहुपाश को आगे बढ़ाकर गोरिंग को उससे बाँधना चाहा। परंतु हुआ क्या? इस तरह दोनो तरफ से आलिंगन और प्रत्यालिंगन का उपक्रम होते ही वह कन्या वहाँ की वहीं अंतर्हित हो गई!

"हम लोग होश में आए। ऐसा जान पड़ा, मानो हम सब कोई भयंकर स्वप्न देख रहे थे। जब तक खेल होता रहा, जर्मिन को छोड़कर किसी के होश-हवास ठिकाने नहीं रहे। जर्मिन ने दो- एक फ़ोटो उस खेल के लिए। खेल समाप्त होते ही उसने अपना केमरा नीचे रक्खा, और सोडावाटर वग़ैरह माँगा। उस समय उसके हाथ काँप रहे थे। गोरिग कुछ नहीं बोला। आलिंगन के नैराश्य ने उसे पागल-सा कर दिया। वह अपनी कुर्सी पर बैठ गया, और जिस जगह वह स्त्री आदृश्य हुई थी, उसी तरफ़ टकटकी लगाकर देखने लगा। इतने में वह ऐंद्रजालिक अपना सब सामान इकट्ठा कर के जाने को तैयार हुआ। उसे मेजर साहब ने कुछ रुपए देकर विदा किया। जब वह चलने लगा, तब उसने गोरिंग की तरफ़ देखकर कहा---'साहब, अब भी होश में आइए।'

"पर गोरिंग ने कुछ जवाब नहीं दिया। काठ का-सा पुतला