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अदल-बदल :: ९९
 

करने वाली स्त्री के किए अपर्याप्त है। इसीलिए हिन्दू कोड कानून की सहायता लेनी पड़ी। इस कानून की मंशा मुख्यतया हिन्दू स्त्री की संतति के अधिकारों के लिए नहीं---प्रत्युत सीधे स्त्रियों के अधिकारों के लिए है। ये अधिकार सामाजिक और आर्थिक दोनों हैं।'

डाक्टर ने कहा---'किंतु अब तक जिस प्रकार चल रहा था--- वैसे ही चलना क्या बुरा था। एक पत्नी के रहते हुए भी दूसरी पत्नी रखी जा सकती है। हिन्दू लॉ इस मामले में बाधक नहीं।'

'जी हां, बाधक था। इसीसे तो यह कानून बनाना पड़ा। जब तक ऐसे कानूनी संशोधन हिन्दुओं में नहीं हुए तब तक सुशिक्षित परिवार में, जो हिन्दू संस्कृति के भी कायल हैं तथा स्त्रियों के सामाजिक समानाधिकार भी चाहते हैं, दोनों प्रकार के विवाहों का रिवाज-सा पड़ गया था। और आप देखते ही हैं कि इधर कुछ दिनों से सभ्य परिवारों में हिन्दू-पद्धति पर विवाह होने के साथ ही, सिविल मैरिज विधान से भी विवाह किए जाते थे।'

'तो कानूनी, धार्मिक तथा सामाजिक दृष्टि से दोनों प्रकार से शादी करने में तो कोई नुक्स न था।'

'बहुत था। स्त्रियों के अधिकारों की ठीक-ठीक मर्यादा का पालन नहीं होता था।'

'किंतु हिन्दू विवाह पद्धति में अब क्या अन्तर पड़ गया?'

'हिन्दू विवाह की तीन मर्यादाएं हैं और चार विधि। इनके बिना हिन्दू विवाह सम्पूर्ण नहीं माना जाता। इनके सिवा लोक प्रचलित रसूम भी बहुत हैं। वे तीन मर्यादाएं हैं---

१. पति-पत्नी का व्यक्तिगत शारीरिक और मानसिक जीवन सम्बन्ध और उनका सामाजिक दायित्व।

२. पति-पत्नी का एक-दूसरे के परिवार और सम्बन्धियों से सम्बन्ध और उनकी मर्यादा।