सीमा पार कर जाना उनके जीवन में तूफान ले आया। दोनों का दोनों के प्रति आकर्षण शुद्ध और प्रगाढ़ प्रेम का प्रतीक न था, कोरा वासनामूलक था। इसके अतिरिक्त माया और कृष्ण-गोपाल दोनों ही अपनी सनक की झोंक में बिना आगा-पीछा सोचे बढ़ते चले जा रहे थे।
जब-तब मायादेवी डाक्टर से लुक-छिपकर मिलतीं। पराई पत्नी थीं, तब तक डाक्टर की उनके प्रति उत्सुकता और व्यवहार कुछ और ही था। अब जब उन्होंने अपने घर और पति को त्याग दिया तथा तलाक की कानूनी कार्यवाहियां करने लगीं, तब उनके विचारों में परिवर्तन और उलझन होने लगी। उनके कायर और चरित्रहीन मन में भय और आशंका ने घर कर लिया। वे सोचने लगे---ऐसा करना क्या ठीक होगा। अब इतने दिन बाद विमला-देवी की ओर ध्यान देने का उन्हें समय मिला। यदि वे मायादेवी से विवाह करते हैं तो विमलादेवी को तो उन्हें त्यागना ही होगा। यद्यपि कभी उन्होंने अपनी पत्नी से प्रेमपूर्वक व्यवहार नहीं किया था, पर इस अदल-बदल का प्रश्न आने पर उनके मन की उलझनें बढ़ गई। कुछ देर के लिए प्रेम का खुमार ठण्डा पड़ गया।
परन्तु बात अब बहुत आगे बढ़ चुकी थी। एक दिन मालती-देवी के मकान में गम्भीर बातचीत हुई। बातचीत में मालती-देवी, मायादेवी, डाक्टर कृष्णगोपाल तथा वकील साहब उपस्थित थे।
वकील साहब कह रहे थे---
'हिन्दू का, हिन्दू धर्म विवाह पद्धति पर विवाहित स्त्रियों की परुष संतति के उत्तराधिकार से सम्बन्धित सिर्फ कानूनी सत्ता है। हिन्दू स्त्रियों के अधिकारों की मीमांसा उसमें गौण है---जोआज- कल की सुशिक्षिता और आधुनिकता का प्रतिनिधित्व करने वाली, साथ ही हिन्दू सभ्यता और संस्कृति की मर्यादा पालन