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डाक्टर कृष्णगोपाल शहर के प्रसिद्ध चिकित्सक थे। उनकी प्रैक्टिस खूब चलती थी। उन्होंने नाम और दाम खूब कमाया था। मिलनसार, सज्जन और उदार भी थे। विद्वान विचारक और क्रियाशील थे। इतने सद्गुणी होने पर भी वे सद्गृहस्थ न रह पाए। उनकी पत्नी विमलादेवी, एक आदर्श हिंदू महिला थीं। वैसी कर्मठ पतिप्राणा पत्नी पाकर कोई भी पति धन्य हो सकता है। ऐसे दम्पति का जीवन अत्यंत सुखी होना चाहिए था, पर दुर्भाग्य से ऐसा न था। चरित्र की हीनता ने डाक्टर कृष्णगोपाल के सारे गुणों पर पानी फेर दिया था। शराब और व्यभिचार, ये दो दोष उनमें ऐसे जमकर बैठ गए थे कि इनके कारण उनके सभी गुण दुर्गुण बन गए और उनका जीवन अशांत और दुःखमय होता चला गया।

श्रीमती विमलादेवी जैसी आदर्श पत्नी थीं, वैसी ही आदर्श माता, गृहणी और रमणी भी। मुहल्लेभर में उनका मान था, अपमान था केवल पति की दृष्टि में। पति अपनी गृहस्थी तथा पतिभाव की मर्यादा का पालन नहीं करते, यही उनकी शिकायत थी, और अब यह शिकायत तीव्र से तीव्रतम होती हुई उग्र झगड़े की जड़ बन गई थी। यह खेद और लज्जा की बात कही जानी चाहिए कि डाक्टर जैसा सभ्य, सुशिक्षित पति विमलादेवी जैसी साध्वी, शान्त पत्नी पर हाथ उठाए, पशु की भांति व्यवहार करे, परन्तु प्रायः नित्य ही यह होता था। डाक्टर दिन-दिन बुरी सोहबत में फंसकर फजूलखर्च, शराबी और व्यभिचारी बनते जा रहे थे। और अब तो वे उस दर्जे को पहुंच चुके थे जब उन्हें किसी धक्के की जरूरत ही न थी, वे स्वयं तेज़ी से फिसलते जा रहे थे।

मायादेवी से उनका साक्षात्कार होना तथा घनिष्ठता की