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९६ :: अदल-बदल
 


आहुति पड़ने से ही से यज्ञ सम्पन्न होता है। स्त्री-पुरुष का जब संयोग होता है तब उसे यज्ञ धर्म कहते हैं, सच्चे यज्ञ का यही स्वरूप है।'

'परंतु सृष्टिकर्ता पुरुष है।'

'पुरुष मन की सृष्टि करता है, नारी देह की सृष्टि करती है। पुरुष जीवात्मा को जगा सकता है, पर उसके आकार की रचना नारी ही करती है।'

'पुरुष हिरण्य गर्भ है।'

'नारी विराट् प्रकृति है।'

'पुरुष स्वर्ग है।'

'नारी पृथ्वी है।'

'पुरुष तपशक्ति का रूप है।'

'नारी यज्ञ शक्ति का। विवाह धर्माचरण है, स्त्री सहधर्मिणी है। उसके बिना पुरुष धर्माचरण नहीं कर सकता। दीन-हीन पुरुष संसार में रह सकता है, पर दीन-हीन नारी नहीं रह सकती। उसकी जीवन-शक्ति, सौंदर्य के प्रकाश में रहती है।'

'संक्षेप में, समाज के दो समान रूप हैं, एक नर दूसरा नारी। दोनों एक वस्तु के दो रूप हैं। दोनों मिलकर एक सम्पूर्ण वस्तु बनती है।' मायादेवी ने विवाद का उपसंहार किया। इस मनो-रंजक विवाद को सुनने क्लब के अन्य सदस्य भी एकत्र हो गए थे। सबने करतल-ध्वनि करके मायादेवी को साधुवाद दिया और सब लोग विनोदपूर्ण बातों में लग गए।

जब सब लोग विदा होने लगे तब डाक्टर मायादेवी के साथ-साथ मालतीदेवी के स्थान तक आए। दोनों में थोड़ा गुप्त परामर्श हुआ और मायादेवी को मालती के स्थान पर छोड़कर डाक्टर अपने घर चले गए।