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९४ :: अदल-बदल
 


डाक्टर और सेठजी खूब जोश में बहस कर रहे थे।

डाक्टर ने कहा--'जीवन की सामग्री पर नारी का अधिकार है, नर का नहीं, क्योंकि कर्मक्षेत्र में नारी की ही प्रधानता है।'

'परन्तु पुरुष का ज्ञान सबसे बढ़कर है।' सेठजी ने कहा।

'बेशक, पुरुष मस्तिष्क से ज्ञान प्राप्त कर सकता है, पर उसमें तब तक उसके प्रयोग की शक्ति उत्पन्न नहीं होगी जब तक कि नारी-शक्ति का उसमें सहयोग न हो।'

'यह क्यों?'

'इसलिए कि पुरुष संसार का ज्ञान प्राप्त कर सकता है, पर उसमें सौन्दर्य की सृष्टि स्त्री ही करती है।'

'किन्तु किस प्रकार?'

'पुरुष मन और बुद्धि से कर्मक्षेत्र में विजय पाता है, स्त्री सहज चातुरी से। सच्ची बात तो यह है कि नारी की शक्ति ने नारी को वस्तुओं से बांध रखा है। पाण्डवों को जय करने के लिए कौरवों को अठारह अक्षौहिणी सेना इकट्ठी करनी पड़ी, पर द्रौपदी ने नेहबन्धन से पाण्डवों को बांध लिया।'

'परन्तु पुरुष के शरीर में बल है।'

'तो स्त्री के हृदय में शक्ति है, उसके हृदय में जो शक्ति की धार बहती है, उसके प्रभाव से उसे किसी बाहरी बल की आव-श्यकता नहीं। यही शक्ति उसके कोमल अंग को बज्र का-सा प्रहार सहने की शक्ति देती है। युग-युग से वह पुरुष के भयानक प्रहारों को सहती आई है, सो इसी शक्ति की बदौलत। वह इन पुरुष-पशुओं की चिता पर जिन्दा जली है इसी शक्ति को लेकर। उसने अकेले ही विश्वभर के निर्मम पुरुषों को संयत संसार में बांध रखा है, इसी शक्ति की बदौलत।'

'फिर भी पुरुष सदा से समाज का स्वामी रहा है।'

'पर समाज की निर्मातृ देवी स्त्री है। पुरुष पुरुष है, स्त्री देवी