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८६::अदल-बदल
 

'श्रीमतीजी, मालतीदेवी एक कल्चर्ड लेडी हैं। जब वे हमारे- आपके बीच में हैं, तो फिर मामला ही दूसरा है।'

रुपये उठाकर उन्होंने मेज की दराज में रखे और मायादेवी से कुछ प्रश्न पूछकर नोट करने के बाद कहा-'अच्छी बात है, मैं रात को कानून की किताबें देख-भालकर मसविदा तैयार कर लूंगा। कल अदालत में आपका बयान भी हो जाएगा।'

'किन्तु देखिए, ऐसा न हो कि कोई झगड़ा-झंझट खड़ा हो जाए । आगा-पीछा सब आप देखभाल लीजिए।'

'मैंने तो आपसे कह ही दिया कि मैं कच्चा काम नहीं करता। आप किसी बात की चिन्ता न कीजिए। कानून आपके पक्ष में है और मैं आपकी सेवा में। सिर्फ फीस का सवाल है। सो उसकी बात तो आप कहती ही हैं- कि मैं बेफिक्र रहूं।'

'जी, बिल्कुल बेफिक्र रहिए।'

'तो आप भी बेफिक्र रहिए। तलाक हो जाएगा। हां, क्या आप अपने पति से कुछ हर्जाना भी वसूल करना चाहती हैं ?'

'जी नहीं, मैं सिर्फ तलाक चाहती हूं।'

'ठीक है, ठीक है। "एक बात और पूछना चाहता हूं। आप यदि नाराज न हों तो अर्ज करूं?'

'कहिए'।

'देखिए, स्त्री-जात की जवानी का मामला बड़ा ही नाजुक होता है। दुनिया में बड़े-बड़े दरख्त हैं, न जाने कब कैसी हवा लग जाए, कब ऊंचा-नीचा पैर पड़ जाए।'

'आपका मतलब क्या है ?

वकील साहब ने सिर खुलजाते हुए कहा-'जी मतलब-मतलब यही कि आप जैसी कल्चर्ड, सुन्दरी युवती को एक आड़ चाहिए।'

'आड़ ?