कहने का अवसर न आता।'
'श्रीमती मायादेवी के समर्थन में मैं इस बोतल में बची हुई लाल परी के तीन समान भाग करता हूं, जिससे दुनिया समझे कि अब पुरुष स्त्रियों को समान अधिकार दे रहे हैं।' यह कहकर डाक्टर ने तीन गिलास भरे और एक-एक गिलास दोनों साथियों के आगे बढ़ाया।
सेठजी ने हंसकर गिलास उठाते हुए कहा---'मैं सादर आपका अनुमोदन करता हूं।'
'और मैं भी।' यह कहकर मायादेवी ने भी गिलास होंठों से लगा लिया।
पी चुकने पर डाक्टर ने एक संकेत मायादेवी को किया और वे बिदा ले चल दीं। डाक्टर भी उठ खड़े हुए।
प्रभा को दो दिन से बड़ा तेज़ बुखार था, और माया दो दिन से गायब थी। किसी कार्यवश नहीं, क्रुद्ध होकर। प्रभा ने अम्मा-अम्मा की रट लगा रखी थी। उसके होंठ सूख रहे थे, बदन तप रहा था। मास्टर साहब स्कूल नहीं जा सके थे। ट्यूशन भी नहीं, खाना भी नहीं, वे पुत्री के पास पानी से उसके होंठों को तर करते 'अम्मा आ रही है' कहकर धीरज देते, फिर एक गहरी सांस के साथ हृदय के दुःख को बाहर फेंकते और अपने दांतों से होंठ दबा लेते और माया के प्रति उत्पन्न क्रोध को दबाने की चेष्टा करते। दिनभर दोनों पिता-पुत्री मायादेवी की प्रतीक्षा करते---परन्तु उसका कहीं पता न था।