मर्यादा नष्ट हुई समझिए।'
'परन्तु हमारे देश की तो यह हालत है कि स्त्रियां पांच-छ: बच्चे पैदा कर लें और बूढ़ी होकर बैठी रहें। उन्हें पुरुष चाहे जितना अपमानित करता जाए, उन्हें उससे कोई वास्ता ही नहीं, पीटें तो पीट भी लें। रात-दिन घर के धन्धे में जुती रहें।'---मायादेवी एक सांस ही में कह गईं।
डाक्टर ने कहा---'निःसंदेह यह एक आपत्तिजनक बात है।
'अजी, इस गरीब और भूखे-नंगे देश में स्त्रियों को अपने सुधार की बात सोचने का अवसर ही कब मिलता है? एक जमाना था जब चित्तौड़ की क्षत्राणियों ने अपने पुत्रों, भाइयों और पतियों को देश के शत्रुओं से युद्ध करने के लिए उनकी कमर में तलवारें बांधी थीं। एक बात में हम कह सकते हैं कि स्त्रियों के हाथ से देश जिया और उन्हीं के बल पर मर मिटेगा।'
'परन्तु आज तो लोग स्त्रियों को पैर की बेड़ियां समझते हैं। वे सोचते हैं मेरे पीछे स्त्री है, बच्चे हैं, कौन इन्हें सहारा देगा। गोया स्त्री एक मिट्टी का लौंदा है, एक निर्जीव पिण्ड की, जिसकी रक्षा के लिए पुरुषों को अपने सभी कर्तव्य छोड़ने पड़ते हैं। माताओ, तुमने अब वीर पुत्रों को उत्पन्न करना छोड़ दिया, तुम श्रृंगार करके सज-धजकर बैठ गईं, लोहे के पिंजरे में तुम गहने- कपड़ों के ऊल-जलूल झगड़ों में उलझकर बैठ गईं। और पुरुषों को इसी उद्योग में फंसा रखा कि वह तुम्हारी आवश्यकताओं को जुटाने में मर मिटें। फलतः जीवन के सारे ध्येय पीछे रह गए।'---सेठजी यह कहकर तीखी नजर से मायादेवी की ओर ताकने लगे।
मायादेवी ने कहा---'इसके लिए भी पुरुष ही दोषी हैं। यदि वे स्त्रियों को अपनी वासना का गुलाम बनाए रखने के लिए उन्हें घरों की चहारदीवारी में बन्द न रखते तो आज आपको ऐसा