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७०::अदल-बदल
 

प्रेमात्मक नहीं। 'काम' विशुद्ध शारीरिक उद्वेग है। नर-मादा अपरिचित रह जाते हैं। संसार के समस्त जीव-जन्तु, नर-मादा जो केवल कामवृत्ति से मिलते हैं वे काम पूर्ति के बाद अपरिचित रह जाते हैं, केवल पुरुष और स्त्री ही अपने सम्बन्ध को अनुबाधित बनाए रह सकते हैं। इसके अतिरिक्त प्रेमतत्त्व की कामतत्त्व के साथ गम्भीर आवश्यकता इसलिए भी है कि काम सम्बन्ध एक ही काल में अनेक स्त्रियों से एक पुरुष का, और अनेक पुरुषों से एक स्त्री का हो सकता है, परन्तु प्रेम सम्बन्ध नहीं। प्रेम सम्बन्ध एक काल में एक स्त्री और एक ही पुरुष का परस्पर हो सकता है। स्त्री और पुरुष के सम्बन्ध में समाज की एक मर्यादा भी है, इसलिए एक स्त्री और पुरुष का स्थिर सम्बन्ध रहना, यह युग-युगान्तर में अनुभव के वाद मनुष्य-जाति ने सीखा और उससे लाभ उठाया है।"

सेठजी ने कहा-'आपकी बात स्वीकार करता हूं, परन्तु लैंगिक आकर्षण और लैंगिक तृप्ति से जो पारस्परिक प्रीति उत्पन्न होती है उसे प्रेम नहीं कहा जा सकता। यदि किसी स्त्री- पुरुष के जोड़े की परस्पर काम-तृप्ति होती रहती है तो उनमें प्रीति उत्पन्न हो जाती है, अर्थात् एक-दूसरे के लिए रुचिकारक भोजन की भांति प्रिय हो जाते हैं। लोगों ने इसीका नाम 'प्रेम' रख लिया है।'

डाक्टर ने हंसकर मायादेवी की तरफ देखा और कहा-'आपका यह कथन तो सर्वथा अवैज्ञानिक है। असत्य भी है। प्रेम वास्तव में एक विशुद्ध आध्यात्मिक वस्तु है, उसका सम्बन्ध मन से है, और कामतत्त्व से उसका कोई प्रत्यक्ष अनुबन्ध नहीं है। यों जहां कहीं स्त्री और पुरुष का मिलना होता है वहां कामतत्त्व भी उदय होता है, लेकिन जहां काम प्रधान है वहां प्रेम हो ही नहीं सकता।' - -