बहुत लाड़-दुलार करती। उसे यत्न से हठपूर्वक खिलाती, हंसाती और मन रखती। मां के लिए वह पिता से भी झिड़कियां खाती।
दुर्भाग्य से विमलादेवी के मातृपक्ष में भो कोई न था। इससे उनका वह सहारा भी नहीं जैसा था। बस सारे संसार में उनकी पुत्री ही उनके लिए एक अवलम्ब थी।
परिस्थिति और आवश्यकता ने विमला देवी को थोड़ा कठोर और दृढ़ भी बना दिया। बहुधा वह पति के अत्याचार का डटकर मुकाबला करती। वह भी अपने अधिकारों को उतना ही जान गई थी जितना अपने कर्तव्यों को। अतः वह जहां अपने कर्तव्य-पालन में पूर्ण सावधान थी, वहां अपने अधिकारों की रक्षा के लिए भी सचेष्ट थी। इसी कारण जब-जब पति-पत्नी में वाग्युद्ध होता तो वह काफी तूमतड़ाम का होता था। दिनोदिन इस युद्ध की भीषणता बढ़ती जा रही थी। और अब तो बहुधा मार-पीट के बाद ही उसकी इतिश्री होती थी। शराब पीकर उसके नशे में डाक्टर बहुधा बहुत गन्दी गालियां बक जाते थे। इन सब बातों से बेचारी छोटी-सी बालिका को व्यर्थ ही अपने आंसू बहाने पड़ते थे।
इस प्रकार यह सुशिक्षित डाक्टर अपनी ही गृहस्थी में आग लगाकर उसीमें ताप रहा था।
क्लब में बड़ी गर्मागर्म बहस चल रही थी। यद्यपि अभी इने-गिने ही सदस्य उपस्थित थे। मायादेवी आज सब्ज परी बनी हुई थीं। वे जोश में आकर कह रही थीं---'पतिव्रतधर्म स्त्रियों के सिर