धड़कन!'
डाक्टर ने हाथ की घड़ी पर एक नजर डाली। फिर कहा--
'मैं ज़रा द्विविधा में पड़ गया हूं।' फिर कुछ सोचकर कहा-- 'सुई लगानी ही पड़ेगी!'
मास्टर ने डरते-डरते कहा--'सूई!' और उन्होंने माया की ओर घबराई दृष्टि से देखा। माया ने डाक्टर की ओर एक बार देखकर आंखें नीची कर लीं। डाक्टर ने प्रिस्किप्शन लिखकर धीरे से कहा--'जी हां, सूई लगाना जरूरी है, यह प्रिस्किप्शन लीजिए और जरा जल्दी से डिस्पेन्सरी तक चले जाइए, यह दवा ले आइए।'
'और आप तब तक?' मास्टर ने प्रिस्किप्शन हाथ में लेकर कहा।
'फिक्र मत कीजिए। हां ज़रा गर्म पानी•••'
मास्टर ने प्रभा से कहा--'बेटी, मैं अभी दवा लेकर आता हूं। तुम ज़रा अंगीठी जलाकर पानी गर्म तो कर दो।'
मास्टर तेज़ी से चले गए। डाक्टर ने सीटी बजाते हुए मायादेवी की ओर देखा, फिर प्रभा से कहा--'ज़रा जल्दी करो बेटी। हां, इधर धुआं मत करो, तुम्हारी माताजी को तकलीफ होगी। अंगीठी उधर बाहर ले जाओ।'
प्रभा ने कहा--'बहुत अच्छा!' वह बाहर जाकर अंगीठी जलाने लगी।
अब डाक्टर ने इत्मीनान से मायादेवी के पास कुर्सी खींचकर बैठते हुए कहा-- 'कहिए हुजूर, क्या इरादा है? आप झूठ-मूठ किसलिए बीमार बनी हैं, देखने में तो आप असल हीरे की कनी हैं।'
मायादेवी ने मुस्कराकर कहा--'बड़े चंट हैं आप डाक्टर, दोनों को भेज दिया, लेकिन मैं सचमुच बीमार हूं।'