पर रहिए।'
सेठजी ने हंसकर कहा-'वाह, क्या बात कही। अच्छा एक दौर चले इसी बात पर।"
सबने गिलास भरे और गला सींचने लगे।
मायादेवी आकर अपने कमरे में सो गईं। दिन निकलने पर भी सोती ही रहीं। तमाम दिन वे सोती ही रहीं। मास्टर साहब यद्यपि पत्नी के स्वेच्छाचार से खुश न थे, फिर भी उन्होंने उसे एक-दो बार उठने के लिए कहा पर मायादेवी ने हर बार जवाब दिया कि तबीयत अच्छी नहीं है। विवश मास्टर बेचारे स्वयं खापकाकर पुत्री को लेकर स्कूल चले गए। स्कूल से लौटकर जब शाम को उन्होंने देखा कि मायादेवी अब भी सो रही हैं और जो भोजन वे बनाकर उनके लिए रख गए थे, वह भी उन्होंने खाया-पिया नहीं है तब वे उनके कमरे में जाकर बोले-
'क्या बात है प्रभा की मां, तमाम दिन बीत गया, कब तक सोती रहोगी।
माया ने क्रोध से कहा-'तुम बड़े निर्दयी आदमी हो। आदमी की तबीयत का भी ख्याल नहीं रखते। मैं मर रही हूं और तुम्हें परवाह नहीं।'
'तुम्हें हुआ क्या है ?
'मेरी तबीयत बहुत खराब है।'
मास्टर ने उसका अंग छूकर कहा-'बुखार तो मालूम नहीं होता।'