डाक्टर जब क्लब में पहुंचे तो दस बज रहे थे। मायादेवी सुर्ख जार्जेट की साड़ी में मूत्तिमान मदिरा बनी हुई थीं। उन्होंने सफेद जाली की चुस्त स्लीवलेस वास्केट पहन रखी थी। अपनी कटीली बड़ी-बड़ी आंखों को उठाकर मायादेवी ने कहा- 'ओफ, अब आपको फुर्सत मिली है, मर चुकी मैं तो इन्तजार करते-करते।'
'मुझे अफसोस है मायादेवी, मुझे देर हो गई। क्या कहं, ऐसी जाहिल औरत से पाला पड़ा है कि जिन्दगी कोफ्त हो गई। जब देखिए-रोनी सूरत
मायादेवी से सटकर एक तरुण युवक और बैठा था। शीतल पेय के गिलास को टेबुल पर रख और सिगरेट का धुआं मुंह से उड़ाकर उसने कहा-'डाक्टर अव शरीफ आदमियों को जाहिल औरतों से पिण्ड छुड़ा लेना चाहिए। अच्छा मौसम है। डाक्टर अम्बेडकर साहब को दुआ दीजिए और नेहरू साहब की खैर मनाइए कि जिनकी बदौलत हिन्दू कोडबिल पास हो रहा है । अब शरीफ एजुकेटेड हिन्दू लेडीज और जेन्टलमैन दोनों को राहत, आजादी और खुशी हासिल होगी।'
'मगर ये कम्बख्त हिन्दू इसे कानून बनने दें तब तो ? खासकर ये ग्यारह नम्बर के चोटीधारी चण्डूल वह बावैला मचा रहे हैं कि जिसका नाम नहीं।'
'लेकिन दोस्त, आज नहीं तो कल, कोडबिल बनकर ही रहेगा। इन दकियानूसों की एक न चलेगी।'
'मगर अफसोस, तब तक तो मायादेवी बूढ़ी हो जाएंगी,इनका सब निखार ही उतर जाएगा।'
मायादेवी ने तिनककर कहा-'अच्छा, अब मुझे भी कोसने लगे! यों क्यों नहीं कहते कि मायादेवी तब तक मर ही