और प्रेम की लता सूखती है---वह नष्ट हो जाए, दोनों एक हो जाएं। एक रस, एक प्राण, एकीभूत। इस अन्तर्युद्ध में जो कायर बने, जो तरह दे, जो ढील छोड़े, वह अपने ही घरका---जीवन की शान्ति का---शत्रु है।
हां, मैं कहूंगा कि यदि अपराध करने पर पति को डांटना पड़े तो अवश्य डांटना चाहिए। यद्यपि डांटना घृणास्पद चीज है, पर लोग स्त्रियों को डांटते हैं। बच्चों को भी डांटते हैं---जब तक डांटना दण्ड के विधान में जारी है। घोर अपराध---जैसे शराब, जुआ, व्यभिचार, धूर्तता, क्रूरता आदि---के बदले पति को डांटना, भोजन बन्द कर देना, आवश्यक है। सुखी परिवार में पति-पत्नी दोनों परस्पर विश्वास, प्रेम और आदर भाव रखें। दोनों अपने कर्त्तव्य में दृढ़ रहें। आवश्यकता पड़ने पर दोनों, दोनों को सीमित-संयमित रखने में समर्थ रहें। यही दाम्पत्य जीवन में सुख-शांति देने वाली बात है, अपने घर को 'पर-घर' बनाने से काम नहीं चलेगा।
---चतुरसेन