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पाप :: १६७
 


किसी की बहू-बेटी का यहां आना इतना भयानक है? आप वकील हैं, प्रतिष्ठित हैं, विद्वान् हैं। लोग आपको सलाम करते हैं, आपको हुजूर कहकर पुकारते हैं, आपको बड़ा समझते हैं। आप एक जिम्मेदार सद्गृहस्थ हैं, पर क्या इन सब उत्तरदायित्व की बातों को आप पहचानते हैं? क्या कुमारी कन्याओं की माताएं आपकी पत्नी की पवित्रता पर विश्वास करके अपनी पुत्रियों को भेज देती हैं, तो यह उनकी भारी भूल नहीं? क्या आपका यह घर अति अपवित्र और सामाजिक जीवन का दुर्घट स्थान नहीं?'

राजेश्वर ने आवेश में आकर कहा--'कुमुद, तुम मुझे गोली मार दो अथवा पिस्तौल मुझे दो, मै स्वयं इन पतित प्राणों का अपहरण करूंगा। मुझे अब लज्जित न करो।'

कुमुद ने अति गम्भीर वाणी में कहा--'स्वामी, क्या कभी और कहीं भी आपने ऐसा पाप किया था?'

'नहीं कुमुद।'

'मन, वचन, कर्म से?'

'कभी नहीं कुमुद, क्या तुम विश्वास न करोगी, मैं विश्वास के योग्य नहीं रहा।'

वह कुर्सी को छोड़कर धरती पर बैठ गए और दोनों हाथों से मुंह ढककर रोने लगे।

कुमुद ने पिस्तौल स्वामी के आगे रखकर कहा--'इसमें अपराध मेरा है, आप मुझे गोली मार दीजिए। मैं स्वयं आत्मघात न कर सकूंगी।'

'तुम्हारा क्या अपराध है कुमुद?'

'मैंने ही इस पाप का बीज बोया। मर्यादा के विपरीत उस कन्या को हास्य में तुमसे परिचित कराया। तुम्हारा और उसका भी साहस बढ़ाया। परन्तु मुझे यह स्वप्न में भी कल्पना न थी कि पुरुष इतने पतित होते हैं। स्वामी, स्त्री एक ऐसी कोमल लता है,