'वह तुम्हें यमुना ले जाने के लिए आई थी।'
'तब आपने उसे छेड़़ा।'
राजेश्वर ने नीची गर्दन किए धीमे स्वर में कहा--'हां।'
'उसने क्या किया?
'मिन्नतें कीं, फिर भय से बेहोश हो गई।'
'आपने यह कुकर्म क्यों किया स्वामी?'
राजेश्वर चुपचाप कुमुद के मुख को ताकते रहे। वह बोल न सके।
कुमुद ने कहा--मेरा जीवन, गृहस्थ धर्म, पुण्य, सभी अकारथ हुआ। जिसे मैंने देवता समझकर पूजा, वह अब इतने दिन बाद पशु प्रमाणित हुआ।
राजेश्वर चुप बैठे रहे।
'कहिए स्वामिन्, मेरे पूज्य देवता, क्या मैने नित्य आपके पैरों की धूल मस्तक तक नहीं लगाई?'
राजेश्वर चुप रहे।
'क्या मैंने सदा आपकी परछाई को अपने समस्त प्राण और शरीर से अधिक पवित्र नहीं समझा?'
राजेश्वर फिर भी नहीं बोले। कुमुद ने फिर कहा--'क्या मैंने अनगिनत व्रत उपवास करके आपके जीवन, आपके प्राण, आपके व्यक्तित्व की रक्षा के लिए देवताओं से याचना नहीं की? क्या इस पृथ्वी पर आपके समान पवित्र, महान् सद्गुण-युक्त पुरुष मेरी दृष्टि में दूसरा है?'
राजेश्वर की आंखों में आंसू आकर बहने लगे। उनके होंठ हिले, पर वह कुछ न कह सके।
कुमुद के स्वर में दृढ़ता थी। उसने कहा--'श्रीमान् जी, क्या आपके घर आने पर किसी भले घर की बेटी की इज्जत की रक्षा भी सम्भव नहीं हो सकती? आपकी धर्मपत्नी से मिलने क्या