रात को राजेश्वर साहस करके घर में आए। कुमुद फर्श पर बैठी कुछ फटा वस्त्र सी रही थी। वह सामने कुर्सी पर बैठकर अकारण ही हंसने लगे।
कुछ ठहरकर कुमुद ने कहा--'भोजन हुआ या नहीं, मैं ज़रा किशोरी के घर गई थी।'
'भोजन कर लिया।' वह फिर हंसने लगे।
कुमुद अपना वस्त्र सीती रही। उसने सीते-सीते ही कहा--'आप सुबह खाना बिना खाए ही क्यों चले गए थे?'
'भूख ही नहीं थी, फिर तुम्हारे तीखे नयनों का भी भय था।' वह फिर ही-ही करके हंसने लगे।
कुमुद ने वस्त्र और सूई एक तरफ रख दी। वह एक कुर्सी पर पति के सामने बैठ गई। उसने कहा--'आज बहुत हंसी आ रही है, इसका कारण क्या है?'
कुछ भी जवाब न देकर राजेश्वर जोर-जोर से हंसने लगे। इसके बाद वह कचहरी, मुवक्किल आदि की बहुत-सी फालतू बातें बक गए। कुमुद ने सहज-गंभीर स्वर में कहा--'सुबह की घटना का क्या कारण था?'
राजेश्वर सहम गए, परन्तु वह फिर ही-ही करके हंस दिए। उन्होंने कहा--'उसीने छेड़-छाड़ की थी।'
'उसने क्या किया था?'
'छेड़-छाड़।'
'अच्छा, फिर आपने क्या किया?'
'मैंने भी वही किया।' वह फिर ही-ही करके हंसने लगे।
'अर्थात्?'
'अर्थात्?' वह फिर हंसने लगे।
कुमुद ने कहा--'आपने भी छेड़छाड़ की।'
'की तो।'