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पाप :: १६१
 

राजेश्वर धीरे-धीरे पाशविक वासना से ओत-प्रोत हो रहे थे। उन्होंने और भी कसकर उसका हाथ पकड़ लिया और सूखे गले तथा भराई आवाज में कहा--'किशोरी, मेरा प्राण निकल जाएगा, मैं तुम्हें प्राण से अधिक चाहता हूं।' उन्होंने उसे खींच कर अपने निकट कर लिया। किशोरी भयभीत होकर एकबारगी ही चिल्ला उठी। यह देखकर राजेश्वर ने अपने बलिष्ठ हाथों से उसका मुंह बड़े जोर से दबाकर उसे धरती पर पटक दिया।

अकस्मात् ऐसा पाशविक आक्रमण किशोरी न सह सकी। वह सकते की हालत में करुण दृष्टि से राजेश्वर को देखने लगी। उसके मुंह से शब्द भी न निकले। धीरे-धीरे वह बेहोश होने लगी। राजेश्वर ने उसे अपने हाथों ऊपर उठा लिया। उसका खुला मुख, अधखुली आंखें और शिथिल शरीर एवं विमुक्त अलका वलियां, प्रभात की उन्मुक्त वायु का झोंका, सभी ने राजेश्वर की पशु-वासना को अन्धा बना दिया। वह घोर अपवित्र भावना से उस महापवित्र कुमारी का मुख चुम्बन करने को नीचे झुके।

एक तीव्र झंकार से चौकन्ने होकर उन्होंने पीछे देखा। कुमुद द्वार पर भौंचक खड़ी है। उसके हाथ से फूल, चंदन और जल की झारी से भरा थाल छूटकर फर्श पर झन्न से गिर गया है। क्षण भर में ही वह सब कुछ समझ गई। वह अग्निमय नेत्रों से पति को देखती हुई भीतर चली आई। राजेश्वर से उसने एक शब्द भी न कहा। वह चुपचाप किशोरी को उसी अवस्था में छोड़कर बाहर चले गए।

कुमुद ने किशोरी को झटपट उठाकर पलंग पर सुलाया। परन्तु इससे प्रथम ही वह होश में आ गई। वह कुमुद को देखते ही 'जीजी, जीजी' कहकर उसके गले से लिपटकर रोने लगी।