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पाप :: १५९
 


उस दिन कोई पर्व था। कुमुद बहुत जल्दी उठकर यमुना स्नान को चली गई। महराजिन उसके साथ गई थी, घर में नौकर छोकरा झाड़ू लगा रहा था। राजेश्वर मीठी नींद में पड़े थे, कुमुद ने उन्हें जगाया भी न था, बताया भी न था। वह बहुधा ऐसा ही करती थी।

आंख खुलने पर राजेश्वर ने देखा बिस्तर पर कुमुद नहीं है। उन्होंने छोकरे को पुकारकर पूछा, तो मालूम हुआ वह महराजिन को साथ लेकर यमुना स्नान को गई हैं।

'गाड़ी ले गई है या नहीं?'

इसका अनुकूल उत्तर पाकर वह फिर आंख मूंदकर पड़े रहे।

छोकरा बाहर दफतर में झाड़ू लगा रहा था। राजेश्वर चुप-चाप पड़े थे। प्रात:काल का मधुमय समीर बह रहा था। उन्हें ऐसा प्रतीत हुआ कि घर में कोई घुसा है। उसके घुसने से घर में सौरभ का प्रसार हुआ है। उन्होंने समझा, कुमुद स्नान करके माथ में बहुत से फूल और चन्दन लेकर वापस आई है। उसके सामने अभी तक पड़े सोते रहने का स्वांग करके अहदीपन का खिताब तथा एक-आध जली-कटी सुननी चाहिए।

कुछ देर चुप पड़े रहने पर भी उन्हें कुछ खटका नहीं प्रतीत हुआ। उन्होंने मुंह उठाकर देखा, द्वार के पास किवाड़ से सटी हुई किशोरी खड़ी है। उसे भ्रम था कि कुमुद सो रही है, वह चुपचाप उसे जगाने की ताक में थी। पर निर्णय नहीं होता था। अब एकाएक राजेश्वर को सामने देखकर वह घबरा गई। पर वह भागी नहीं, उसने अपने को सम्भाला, और मुस्कराकर राजेश्वर को प्रणाम किया।

आज इस समय इस शून्य घर में किशोरी को इस अवस्था में देखकर राजेश्वर के शरीर में प्रसुप्त वासना का एकबारगी