यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१५६:: अदल-बदल
 

उन्होंने साहस करके कहा--'हंस क्यों रही हो?'

'रोऊं क्या?'

'कुछ सोच रही हो, भला क्या बात तुम्हारे मन में है?'

'तुम्हीं बताओ, तुम तो अन्तर्यामी हो।'

'हूं तो, पर बताऊंगा नहीं।'

'जाने दो।' कुमुद फिर छालियां काटने में जुट गई। इस बार उसकी हंसी रुक न सकी। वह मुंह फेरकर हंसने लगी।

'तुम मुझे बेवकूफ समझती हो, क्यों?'

'बेशक, इसमें आपको कुछ आपत्ति है?'

'मैं बेवकूफ क्यों हूं?'

'यों कि बिना बात राड़ बढ़ाते हो, सो नहीं जाते।'

'तब मैं सोता हूं।' कहकर राजेश्वर करवट बदलकर सो गए।

कुमुद ने और बातें नहीं की, वह वहीं बैठी सरौता चलाती तथा धीरे-धीरे कुछ गुनगुनाती रही। कुमुद से कुछ सुनने की आशा करते-करते राजेश्वर सो गए।

आंख खुलने पर उन्होंने सुना, कुछ लोग उनके पलंग के पास बैठकर धीरे-धीरे बातें कर रहे हैं। क्षणभर बाद उन्होंने देखा कुमुद और किशोरी हैं। राजेश्वर को जागता देख वह सिकुड़कर उठ भागने की तैयारी करने लगी। कुमुद ने एक बार पति की ओर वक्र दृष्टि से देखा, जरा मुस्कराई, और किशोरी का हाथ पकड़कर गिरा दिया।

राजेश्वर ने रसिक की भांति कहा--'यह हाथापाई क्या हो रही है?'

'क्यों? आपको जामिन किसने बनाया? मेरा घर है, मैं जो चाहूंगी, करूंगी।'

'कभी नहीं, अपना घर होने से ही क्या हुआ, किसी पर