यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१३२ :: अदल-बदल
 


के निकट रहना, उसे देखना, और उसकी बातें सुनना चाहता था। उसका यह अनुराग और आसक्ति रजनी पर तुरन्त ही प्रकट हो गई। वह चौकन्नी हो गई। वह एक योद्धा प्रकृति की लड़की थी। ज्योंही उसे पता चला कि भैया के यह लम्पट मित्र प्रेम की लहर में आ गए हैं, उसने उन्हें ज़रा ठीक तौर पर पाठ पढ़ाने का निश्चय कर लिया। कालेज और बोडिंग में रहने वाले छात्रों की लोलुप और कामुक प्रवृत्ति का उसे काफी ज्ञान था। वह स्त्री जाति की रक्षा के प्रश्न पर विचार कर चुकी थी। वह इस निर्णय पर पहुंच चुकी थी कि स्त्रियों को अपने सम्मान की रक्षा के लिए मर्दो का आसरा नहीं तकना चाहिए। वह जब भाई से इस विषय पर जोर-शोर से विवाद करती थी, तब आवेश में उसका मुंह लाल हो जाता था। राजेन्द्र को तो उसे इस प्रकार उत्तेजित करने में आनन्द आता था, किन्तु दिलीप महाशय अकारण ही उसका समर्थन करते-करते कभी-कभी तो अपना व्यक्तित्व ही खो बैठते थे।

रजनी ने उन महाशय को प्रेम का खरा सबक सिखाने का पक्का इरादा कर लिया। ये स्कूल-कालेज के गुण्डे लड़कियों को मिठाई से ज्यादा कुछ समझते ही नहीं। देखते ही उनकी लार टपक पड़ती है, वे निर्लज्ज की भांति उनकी मिलनसारी,उदारता, और कोमलता से लाभ उठाते हैं। रजनी होंठ काटकर यह सोचने लगी कि आखिर ये पुरुष स्त्रियों के अपमान का साहस ही किसलिए करते हैं। स्त्रियों के सामने जमनास्टिक की कसरत-सी करना तो इन लफंगों का केवल नाटक है। रजनी देख चुकी थी कि उसे अपने कालेज जीवन में इन उद्दण्ड युवकों से कितना कष्ट भोगना पड़ा था। वे पीठ पीछे लड़कियों के विषय में कितनी मनमानी अपमानजनक बातें किया करते हैं। उनकी मनोवृत्तियां कितनी गन्दी होती हैं। उसने पहचान लिया कि भैया के मित्र भी उसी टाइप के