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अदल-बदल :: ११३
 


थे। केवल उनका एक विश्वासी नौकर उनके साथ रहता था। एक गहरी उदासी की छाया हर समय उनके मन पर बनी रहती थी। और वे रह-रहकर ऐसा समझने लगते थे मानो उन्होंने कोई बड़ा जघन्य पाप-कर्म कर डाला हो। वास्तव में बात यह थी कि दोनों भयभीत से रहते थे, दोनों ही जैसे कुछ ऐसी घटना की प्रतीक्षा-सी कर रहे थे मानो कोई दुर्घटना घटने वाली हो।

'विवाह' एक ऐसा शब्द है--जिसके नाम से ही युवक-युवतियों के हृदय में नवजीवन और आनन्द की लहर उठने लगती है--परन्तु इतने संघर्ष और कठिन प्रयास के बाद जब दोनों की मिलन-बाधाएं खत्म हो गईं तो अब जैसे वह मिलन ही उनके लिए भय की वस्तु बन गई। परन्तु जैसे भय का सामना करने को मनुष्य साहस करता है उसी भांति दोनों ने साहस किया--और केवल चुने हुए मित्रों की उपस्थिति में दोनों का विवाह सम्पन्न हो गया। विवाह हो जाने पर दोनों ही ने ऐसा अनुभव किया मानो उनके शरीर में से रक्त की एक-एक बूंद निकाल ली गई हो।

मित्रों का आनन्दोत्सव और हा-हू जब समाप्त हो गया तो अन्त में एकान्त रात्रि में दोनों का एकान्त मिलन हुआ। इसे आप सुहागरात का मिलन कह सकते हैं, पर यह वह सुहागरात न थी जो प्रकृति की प्रेरणा का प्रतीक है, जहां जीवन में पहली बार बसंत विकसित होता है--यहां तो वर-वधू दोनों ही एक-एक संतति के जन्मदाता थे। पति एक दूसरी पत्नी का अत्याचारी पति था और स्त्री एक सीधे, सच्चे, निर्दोष पति की पत्नी थी।

स्वभावत: ये दोनों ही--निर्बुद्धि और पाशाविक प्रवृत्ति के हीन प्राणी न थे। विचारवान और सभ्य थे। यद्यपि डाक्टर को मद्यपान की आदत थी--और दुराचारी तथा वेश्यागामी भी था, परन्तु आज इस सुहागरात के एकान्त मिलन में उसकी सारी विलास-वासना जैसे सो गई थी। उसे ऐसा अनुभव हो रहा था