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अदल-बदल :: १०५
 

'परन्तु परिस्थिति ऐसी आ पड़ी है, कि मुझे मध्यस्थ बनना ही पड़ा।'

'किंतु मैंने तो आपको मध्यस्थ बनाया नहीं।'

'आपके पति ने बनाया है।'

'किंतु मैंने नहीं, जब तक हम दोनों समान भाव से आपको मध्यस्थ न बनाएं आप कैसे मध्यस्थ बन सकती हैं!'

'तो क्या आप मुझसे बातचीत करना ही नापसंद करती हैं।'

'जी नहीं, आपको जो कहना है कह दीजिए, मैं आपको अपने पति का संदेशवाहक समझकर आपकी बात सुनूंगी। परन्तु समझौते की यदि नौबत पहुंची तो वह मेरे और उनके बीच प्रत्यक्ष ही होगा। किसी मध्यस्थ के द्वारा नहीं।'

'तब संदेश ही सुन लीजिए। आपके पति ने आपको त्यागने का संकल्प कर लिया है, वे आपको तलाक दे रहे हैं।'

'मैंने आपका संदेश सुन लिया।'

'आपको इस सन्बन्ध में कुछ कहना है?'

'जो कहना है उन्हीं से कहूंगी, वह भी तब, जब वे सुनना चाहेंगे, नहीं तो नहीं।'

'किन्तु क्या आप अपने पति से लड़ेंगी?'

'जी नहीं।'

'आपके पति, यदि आप उनसे न लड़ें और समझौता कर लें तो वे आपको यह मकान और समुचित मासिक वृत्ति देने को तैयार हैं।'

'मैं तो पहले ही कह चुकी हूं कि इस सम्बन्ध में मैं आपसे कोई बात करना पसन्द नहीं करती।'

'किन्तु बहन, मैं तो तुम्हारी भलाई के लिए यहां आई हूं।'

'इसके लिए मैं आपकी आभारी हूं।'

'आप भली भांति जानती हैं, कि यह स्त्रियों की स्वाधीनता