मालती ने कहा--'मायादेवी, यह सब तो ठीक है। पर देखो, आदर्श के नाम पर व्यवहार को मत भूलो। इस काम को व्यावहारिक दृष्टि से देखो। मैं साफ-साफ डाक्टर साहब से पूछती हूं कि मायादेवी का पूर्व पति से विच्छेद होने पर आप उससे तुरन्त विवाह करेंगे?'
'मुझे उज्र नहीं है, पर विमलादेवी का मसला कैसे हल होगा?'
'उसे आपको त्यागना होगा।'
'और लड़की को?'
'उसका निर्णय अदालत के अधीन है।'
'पर यदि विमलादेवी ने विरोध किया?'
'तो आपको उससे लड़ना होगा, आपको हर हालत में उसे त्यागना होगा। आप पशोपेश मत कीजिए। जो कहना हो, साफ-साफ कहिए।'
'तो मालतीदेवी, विमला से आप ही मिलकर मामला तय कर लीजिए। आप जो निर्णय करें मुझे स्वीकार होगा। सम्भव है कोई आपसी समझौता ही हो जाए।'
'अच्छी बात है। मैं उससे मिलूंगी। परन्तु यह तय है कि दोनों विच्छेद के मामले एक साथ ही कोर्ट में जाएंगे।'
'ऐसा ही सही।' डाक्टर ने गम्भीरता से जवाब दिया।
वकील साहब ने कहा--'यह और भी अच्छा है। जैसा निर्णय हो, वह आप तय कर लीजिए।'
इसके बाद यह मजलिस बर्खास्त हुई।