था उन्हें उनके भरण-पोषण के लिए मुंहमांगा धन दें।'
'दोषी कैसे?'
'दुराचार की।'
डाक्टर के मन में कहीं मर्मान्तक चोट लगी। भला विमला जैसी सती-साध्वी पर दुराचार का दोष कैसे लगाया जा सकता है। उन्होंने कहा--'मैं उसे उचित भरण-पोषण देने को तैयार हू।'
यह कहकर डाक्टर उदास हो गए और उनका मन बेचैन हो हो गया।
मायादेवी ने इस बात को भांप लिया। उसके आत्मसम्मान और अहंभाव पर कहीं चोट लगी। उसने कहा--'वकील साहब, मेरे इस मामले से डाक्टर साहब के मामले का क्या सम्बन्ध है?'
'कुछ भी नहीं।'
मालतीदेवी ने कहा--'कुछ भी नहीं कैसे, इसीलिए तो तुम अपना घर त्याग रही हो--इसे क्यों छिपाती हो?'
'मैं किसी पर बोझ बनना पसन्द नहीं करती, मैं केवल स्वतन्त्र जीवन चाहती हूं।' मायादेवी ने उदास भाव से कहा।
वकील साहब ने उत्साहित होकर कहा--'ठीक है, ठीक है, फिर मायादेवी जैसी पत्नी जिसके भाग्य में हो वह तो स्वयं ही धन्य हो जाएगा।'
'मेरा अभिप्राय केवल यही है कि पुरुषों ने जो सैकड़ों वर्ष से स्त्रियों को साहस, ज्ञान और संगठन से रहित कर रखा है, उन्हें अपनी वासना की दासी और बच्चे पैदा करने की मशीन बना रखा है, यह न होना चाहिए। उनका एक पृथक् अस्तित्व है। मैं अपने उदाहरण से यह दिखाना चाहती हूं। मैं चाहती हूं कि पुरुष स्त्रियों की शक्ति का भरोसा करें। और वे प्यार के नाम पर उन पर जुल्म न कर सकें।'