वर्तमान काल में, यज्ञ करते समय, मन्त्रो के इतिहास (पुराण) सुनाने की रीति नहीं; परन्तु महाभारत के समय तक वेद-मन्त्री के कीर्ति-गान की प्रथा प्रचलित थी। इस काम का भार पौराणिको पर था। उदाहरण के लिए महाभारत की भूमिका देखिए, जहाँ पर पौराणिक उग्रश्रवा, यज्ञ करते समय, ऋषियों से यह पूछते है कि क्या आप लोग इतिहास सुनने के लिए तैयार है-
कृताभिषेकाः शुचयः कृतजप्याहुताग्नयः।
भवन्त आसने स्वस्थाः व्रवीमि किमर्हे द्विजाः?॥
महाभारत की इस भूमिका में नीचे दिया गया श्लोकार्द्ध भी है, जिससे प्रकट होता है कि वेद-मंत्रोच्चारण के समय पुराणेतिहास का वर्णन आवश्यक था-
इतिहास-पुराणाभ्यां वेदं समुपबृंहयेत्।
प्रसिद्ध है कि कलियुग के आरम्भ मे भगवान् व्यास ने वेद-मन्त्रो को यथाक्रम सजा कर उन्हें वर्तमान रूप में परिणत किया। यहां पर इस बात के विचार की आवश्यकता नहीं कि किस समय और किस हिसाब से किसने वेदो को विभक्त किया। परन्तु इसमें सन्देह नहीं कि उस समय वह भाग, जो इतिहास-पुराण के नाम से प्रसिद्ध था, वेद से पृथक् कर दिया गया। तभी आधुनिक पुराणो का जन्म हुआ समझना चाहिए। शतपथ-ब्राह्मण, नैत्तिरीय आरण्यक और उपनिषदो से विदित होता है कि प्राचीन समय में ब्राह्मण लोग भी इतिहास-