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अतीत-स्मृति
 


की। उसने कहा, इस संवत को ६०० वर्ष का पुराना मान लेना चाहिए, क्योंकि नये किंवा दो तीन वर्ष के पुराने संवत् का उतना आदर न होगा। इसलिए उसने ५४४ में ५६ जोड़कर ६०० किये। . इस तरह उसने इस विक्रम-संवत् की उत्पत्ति ईसा के ५६ या ५७ वर्ष पहले मान लेने की आज्ञा लोगों को दी।

इस कल्पना के आधार पर विक्रमादित्य ईसा की छठी शताब्दी में हुए माने जाने लगे और उसके साथ महाकवि कालिदास भी खिंचकर ६०० वर्ष इधर आ पड़े। इस कल्पना के सम्बन्ध में आज तक सैकड़ों लेख लिखे गये हैं। कोई इसे ठीक मानता है, कोई नहीं मानता। कोई इसके कुछ अशों को ठीक समझता है, कोई कुछ को।

डाक्टर कीलहार्न तो इस कल्पना के जनक ही ठहरे। डाक्टर हानेली भी इसे मानते हैं। विन्सेंट स्मिथ साहब और डाक्टर भाण्डारकर कहते हैं कि मालव-संवत् का नाम विक्रम-संवत् में बदल जरूर गया, पर बदलने वाला गुप्तवंशी राजा चन्द्रगुप्त प्रथम था। डाक्टर फ्लीट का मत है कि विक्रम-संवत् का चलाने वाला राजा कनिष्क था। इसी तरह ये विद्वान् अपनी अपनी हॉकते है। एक मत होकर सब ने किसी एक कल्पना को निर्भ्रान्त नहीं माना और न इस बात के माने जाने के अब तक कोई लक्षण ही देख पड़ते हैं।

राय बहादुर सी० पी० वैद्य, एम० ए०, एल०-एल० बी० ने इस विषय में एक बहुत ही युक्तिपूर्ण लेख लिखा है। उनका लेख