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राजा युधिष्ठिर का समय
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अधिक से अधिक दशम या एकादश शताब्दी अनुमान किया। आप ने वेबर साहब को "भारत द्वेषी" की और उन्हीं के देशवासी गोल्डस्टुकर को "आचार्य" की पदवी दी है। अस्तु। इससे यह सूचित हुआ कि ईसा के हजार वर्ष पहले ही महाभारत प्रचलित था और वासुदेव तथा अर्जुन आदि की गिनती देवताओ में होने लगी थी। यदि ऐसा न होता तो पाणिनि को वासुदेवक और अर्जुनक के शब्दों की साधना न बतलानी पड़ती। अच्छा, महाभारत तो ईसा के हजार वर्ष पहले प्रचलित था, पर युधिष्ठिर किस समय विद्यमान थे? अथवा महाभारत का युद्ध कब हुआ था? वही ईसा के पहले १४३० वर्ष। वही विष्णुपुराण का मत जिसे बङ्किम बाबू ने पसन्द किया है। क्योंकि उन्हाने उसका कहीं खण्डन नहीं किया। युद्ध होने के बाद तीन चार सौ वर्ष मे वासुदेव और अर्जुन इत्यादि की गिनती देवताओं में होने लगी होगी। यही बङ्किम बाबू का मत है।

सुविज्ञ सम्पादक जी ने किस लिए इतना परिश्रम किया, किस लिए यह लेख मालिका निकाली, सो बात हमारी समझ मे फिर नही आई। खैर, कुछ तो आप ने समझा हो होगा। सम्भव है, हम आपके मतलब को न समझे हो। पर एक प्रार्थना आप से हमारी है। वह यह कि यदि आप किसी का मत लिखा करें तो जरा सावधानी से लिखा करें। कुछ का कुछ न लिख दिया करें। आप को असावधानता के दो एक उदाहरण हम और दिखलाये देते हैं। वे भी अनुवाद सम्बन्धी हैं-