पृष्ठ:अतीत-स्मृति.pdf/६४

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
बाली-द्वीप में हिन्दुओं का राज्य
५७
 

इन चतुर्वर्ण-हिन्दुओ मे केवल वैश्य और शूद्र ही नाना प्रकार के देवताओ और देवियो की मूर्तियों नहीं पूजते। वहाँ ब्राह्मणों का प्रताप अब भी अक्षुण्ण है और सर्वसाधारण उन्हें भक्ति और श्रद्धा की दृष्टि से देखते है। क्षत्रिय लोग सेना और विचार-विभाग में काम करते है। ब्राह्मण लोग शिखा धारण करते है; पर यज्ञोपवीत नहीं पहनते। मंत्रोच्चारण मे ओकार का व्यवहार प्रचलित है। परन्तु वहाँ वाले उसे "ओ शिव चतुर्भुज" यह मन्त्र पढ़ते है। ये शब्द "ओ शिव चतुर्भुज" का केवल बिगड़ा हुआ रूप है।

बाली-द्वीप के ब्राह्मणेतर हिन्दू खाद्याखाद्य का कुछ भी विचार नहीं करते। वे गो-मांस तक खाते हैं। अन्य पशु-पक्षियों की तो बात ही क्या है। मुर्गी और सुअर का मांस तो वहाँ वालों का अत्यन्त प्रिय खाद्य है। यह बात बाली के केवल क्षत्रिय, वैश्य और शूद्रो ही की है। वहाँ के ब्राह्मण निरामिषहारी है। उनमे से कोई कोई ऐसे भी है जो केवल फल-फूल खाकर ही अपना जीवन निर्वाह करते हैं। अन्य खाद्य पदार्थ हाथ से भी नहीं छूते।

द्वीप मे भिखारी ढूँढ़ने पर भी नहीं मिलते। यदि कोई मनुष्य कोई साधारण पाप-कर्म करता है तो उसे प्रायश्चित्त करना पड़ता है। परन्तु प्रायश्चित्त करने वाले को शारीरिक दण्ड नही भोगना पड़ता। गोबर या गोमूत्र भी नहीं खाना पड़ता। किन्तु जब वह अपना प्रियतम खाद्य त्याग करता है तब किसी गुफा में जाकर