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अतीत-स्मृति
 


सूर्य्य और चन्द्रमा प्रति दिन बाईं से दाहिनी ओर को, सुमेरु की प्रदक्षिणा करते हैं; तारागण भी ऐसा ही करते हैं। थोड़ी दूर पर फिर लिखा है—

स्वतेजसा तस्य नगोञमस्य महोपधीनाञ्च तथा प्रभावान्।
विभक्तभावो न बभूव कश्चिदहोनिशानां पुरुषप्रवीर॥

अ॰ १६४, श्लोक ८

अपनी दीप्त और महौषधियों से सुमेरु-पर्वत अन्धकार को यहां तक जीत लेता है कि रात और दिन का भेद ही नहीं रह जाता। आगे लिखा है—

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बभूव रात्रिर्दिवसश्च तेषां सम्वत्सरेणेव समानरूपः॥

अ॰ १६४०, श्लोक १३

वहाँ के रहने वालों का रात-दिन मिला कर हम लोगों का एक वर्ष होता है। इन प्रमाणों से यह सिद्ध है कि महाभारत के समय उसके रचयिता को उत्तरी ध्रुव का ठीक ठीक ज्ञान था। सुमेरु-की दीप्ति का जो उल्लेख है उससे, बहुत करके, मेरुज्योति (Aurora Borealis) से अभिप्राय है। यह ज्योतिर्माला उत्तरी ध्रुव ही में देख पड़ती है। ये बातें ऐसी हैं जो ज्योतिष शास्त्र सम्बन्धिनी गणना, अर्थात् गणित, द्वारा नहीं जानी गई होंगी, क्योंकि उस समय ज्योतिष-विद्या की इतनी उन्नति नहीं हुई थी। बिना आँख से देखे, अथवा जिसने देखा है उससे सुने, इनका इतना, विशुद्ध ज्ञान नहीं हो सकता। तैत्तिरीय ब्राह्मण में तो स्पष्ट लिखा है कि