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अतीत-स्मृति
 


जब वे पूर्वोक्त विपत्ति में पड़े थे तब, अपना सम्पादित किया हुआ ऋग्वेद भेजा और उनकी सिफ़ारिश महारानी विक्टोरिया तक से की। इसके कुछ ही दिन पीछे ब्रिटिश गवर्नमेण्ट ने उनको आपत्ति-मुक्त कर दिया। परन्तु तिलक महाशय के समान दुर्दैवग्रस्त शायद ही कोई दूसरा मनुष्य हो। एक के अनन्तर एक आपत्ति उनको घेरे ही रहती थी। इस समय भी वे एक वसीयतनामे के झगड़े में फँसे हैं। इसीलिए हम कहते हैं कि उनकी विद्वत्ता के कारण उनको विद्वान ही विशेष जानते हैं, परन्तु दैवदुर्विपाकजनित उनकी आपदाओं के कारण उनको सभी जानते हैं।

विद्वानों का पहिले यह अनुमान था कि ऋग्वेद के प्राचीन से प्राचीन मन्त्र कोई ३००० वर्ष से अधिक पुराने नहीं हैं। परन्तु "ओरायन" में तिलक महाशय ने यह सिद्ध कर दिखाया कि वैदिक ऋचाओं की रचना ईसा के ४,५०० वर्ष पहले और ब्राह्मण-ग्रन्थों की रचना ईसा के २,५०० वर्ष पहले ही हो चुकी थी। उनके मत में वेद और ब्राह्मण इससे अधिक पुराने नहीं हैं। उन्होंने लिखा है कि वैदिक काल में वासन्तिक विषुवत् (वसन्त ऋतु का अहोरात्र-समत्व) अग्रहणी संक्रान्ति में हुआ करता था, परन्तु ब्राह्मण-काल में वही कृत्तिका में होने लगा था। इसी प्रमाण पर उन्होंने वेद और ब्राह्मणकाल का पूर्वोक्त अनुमान किया है। योरप और अमेरिका के विद्वानों ने पहले यह सिद्धान्त स्वीकार न किया, परन्तु उन्होंने जब विशेष गवेषणा की तब उनको भी "ओरायन" के सिद्धान्त पर विश्वास आने लगा। इसका