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आदिम आर्य्य
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आर्य्य दक्षिण से चल कर उत्तरी भारत में पहुंचे। उनके इस कथन का समर्थन किसी भी प्राचीन ऐतिहासिक कथा से नहीं होता। कुरु और पाञ्चाल नाम की आर्यजातियां उत्तरी भारत ही की थीं। उत्तर-कुरु और उत्तर-पाञ्चाल के नाम से ही पुकारी जाती थीं। उपानिषदों से यही पता चलता है कि उत्तर-कुरु-जाति का निवास हिमालय पर्व्वत माला के उत्तर में था। ऋग्वेद में 'पूर्व्व-देव' शब्द है। जिस मन्त्र में यह शब्द आया है उसका अर्थ है-"पूर्व्वी देवी ने पाश्चात्य देवो की रीति का अनुसरण किया, जिससे वे समृद्धिशाली हो गये। भाष्यकारों ने पूर्व-देव, का अर्थ 'असुर' किया है। अमर-कोश के रचयिता ने भी इस संयुक्त शब्द के यही अर्थ किये हैं। इससे स्पष्ट है कि पूर्व में असुरो का निवास था, जिन्होंने पश्चिमी देवो से सभ्यता सीखी। जब पूर्व में असुर रहते थे तब मजूमदार महाशय का यह कहना कैसे मान लिया जाय कि भारतीय आर्य पूर्व से पश्चिम की ओर गये।

सूर्य्य की गति के अनुसार ही दिशाओ के नाम रक्खे गये थे। यह बात ऋग्वेद, मण्डल १, सूक्त ९५, मन्त्र ३ से स्पष्ट है-

पूर्व्वामनु प्रदिंश पार्थिवानामृतून् प्रशासद्धिद-धावनुष्ठु।


अर्थात्-ऋतुओं की रचना करके वह (सूर्य्य) पृथ्वी की पूर्वादि दिशाओं की रचना करता है। अतएव मजूमदार महाशय की कल्पना समीचीन नहीं जान पड़ती।

नवंबर के माडर्न-रिव्यू में मजूमदार महोदय ने प्रभू-महा-