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आदिम आर्य्य
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पुरातत्त्व-वेत्ताओं का मत है कि प्राचीन समय में, हिमालय के नीचे, उत्तर-पूर्व के कोने में, किसी सभ्य जाति की बस्ती रही होगी। यदि हम यह मान लें कि भारत के दक्षिणी भाग से कोई जाति, हिमालय के नीचे, उत्तर-पूर्व्व के कोने में, जो बसी और वहाँ उन्नति करके देश के पश्चिमी भाग मे, जहाँ की भूमि बड़ी ही उर्वरा थी, जो फैली तो, हमें चारो दिशाओं के सूचक इन चारों शब्दो के अर्थ, भारत-भूमि की तत्कालीन स्थिति के अनुसार, समझने में कोई दिक्क़त नहीं पड़ती।

'दक्षिण' शब्द 'दक्ष' धातु से बना है। 'दक्ष' का अर्थ है-बढ़ना'। उसका अर्थ 'दाहिना' भी होता है, परन्तु इस अर्थ में वह पहले व्यवहृत न होता था। वैदिक काल में एक देवता का नाम भी दक्ष था। वह अदिति का पिता था। इसलिए उसका दूसरा नाम 'आदित्य' भी था। 'आदित्य' शब्द के अर्थ हैं-निस्सीम दृग्गोचर। जो लोग हिमालय के पूर्व से उत्तर की ओर गये होंगे उन्हे, आगे चल कर, उक्त पर्वत की ऊँचाई के कारण, अवश्य रुकना पड़ा होगा। इधर दक्षिण की ओर से भी लोगों के झुण्ड के झुण्ड आते रहे होंगे। उस समय, दक्षिण ही विस्तृत दिशा रही होगी और वहां लोगों का निवास भी अधिक रहा होगा। इसीसे प्रत्यक्ष किवा दृग्गोचर, परन्तु निस्सीम, विस्तार के कारण ही, उस समय उसका नाम 'आदित्य' पड़ा होगा। इसी प्रकार हिमालय की ऊँचाई के खयाल से 'उत्तर'