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अतीत-स्मृति
 

सागरद्वीपवासांश्च नृपतीन् म्लेच्छयोनिजान्।
द्वीपं साम्राह्वयश्चैव वशे कृत्वा महामतिः॥

मिताक्षरा से यह सिद्ध होता है कि हिन्दू लोग व्यापार के लिए जहाज़ों द्वारा दूर दूर तक समुद्र-यात्रा करते थे। समुद्री जहाज़ों का वर्णन हमें वायुपुराण, हरिवंश, मार्कण्डेयपुराण, भागवतपुराण, हितोपदेश, शकुन्तला, रत्नावली, दशकुमारचरित, कथा-सरित्सागर आदि अनेक संस्कृत-ग्रन्थों में मिलता है। कथा-सरित्सागर मे तो अनेक जगह जहाजों का वर्णन है। यह ग्रन्थ ईसा की पाँचवीं शताब्दी का है। इस ग्रन्थ के बनने के समय आर्य्य लोग समुद्र-गामी जहाज़ों को बनाना अच्छी तरह जानते थे। यह बात इस अन्य के पञ्चीसवें तरङ्ग में स्पष्ट लिखी हुई है। इसी ग्रन्थ के पचासवें तरङ्ग में लिखा है कि चित्रकर नामक एक मनुष्य दो श्रमणो (बौद्ध-संन्यासियों) के साथ विस्तृत समुद्र-पार करके प्रतिष्ठान नगर मे पहुँचा। वहाँ शत्रुओं को जीत कर आठ दिन बाद वह मुक्तिपुर-द्वीप में उपस्थित हुआ। पाश्चात्य देश के प्रसिद्ध इतिहासवेत्ता स्ट्राबो ने लिखा है कि भारतवासी गङ्गा-नदी के मुहाने से समुद्र पार करते थे। वे जहाज़-द्वारा पालि-बोथ्रा तक जाते थे!

म्यकफ़र्सन के "एनल्स भाव कामर्स" (Macpherson's' Annals of Commerce ) नामक ग्रन्थ में लिखा है कि भारतवासी अपना वाणिज्यव्यापार बहुत दूर दूर तक करते थे। यहाँ तक कि मिश्र देश के साथ भी जहाजों द्वारा उनका व्यापार होता