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अतीत-स्मृति
 


उस समय जहाज़ों के पात्र और मस्तूल आदि का भी अभाव न था। उदाहरण के लिए अथर्व-वेद का ५।१९।८ मन्त्र देखिए। इस मन्त्र में पीड़ित ब्राह्मणोंवाले राज्य के नाश की तुलना एक छिद्रयुक्त डूबते हुए जहाज से की गई है। ऋग्वेद १।५६।२ और ४५५।६ में भी धन-प्राप्ति के लिए समुद्र-यात्रा करनेवाले मनुष्यों का उल्लेख है। ऋग्वेद में यह भी लिखा है-

"मरता हुआ कोई मनुष्य जिस प्रकार धन का त्याग करता है उसी प्रकार तु्ग्र-भुज्जु को समुद्र में भेजा था। अश्विद्वय, तुम लोग अपने नोका-समूह पर चढ़ा कर उसे सकुशल लौटा लाये‌। वह नौका पानी के भीतर चली जाती है, पर उसके भीतर पानी नहीं जा सकता"।

उस समय सौ सौ पतवारों वाले बड़े बड़े जहाज़ समुद्र में आते जाते थे-यह बात इस सूक्त से अवश्य ही सिद्ध होती है। वेदों के बहुत से सूक्तों में ऐसी ऐसी बातें पाई जाती हैं। बौधायन-धर्मसूत्र यद्यपि बहुत प्राचीन ग्रन्थ नहीं तथापि उसमें बहुत पुरानी बातों का वर्णन अवश्य है। उसमें भी हम समुद्र-यात्रा के अनेक उदाहरण पाते हैं। ऋग्वेद में जहाज़ों और बड़ी बड़ी नावों से सम्बन्ध रखनेवाले अनेक शब्दो का प्रयोग हुआ है।

ऋग्वेद के जिन मन्त्रों का उल्लेख हमने ऊपर किया है उनसे यह सिद्धान्त निश्चित होता है कि वैदिक युग में भारतवर्ष की सौभाग्य-लक्ष्मी उस पर बहुत प्रसन्न थी। भारतवर्ष ने उस समय समुद्र में जानेवाले जहाज़ों की सहायता से व्यापार में बहुत उन्नति