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अतीत-स्मृति
 


भी कुट-युद्ध में प्रवृत्त होना साबित किया है। शुक्राचार्य प्रार्थना और खुशामद के द्वारा भी शत्रु से अपना अभीष्ट सिद्ध कर लेना बुरा नहीं समझते। अपमान हो तो हर्ज नहीं, कार्य सिद्ध होना चाहिए। इसी से शुक्राचार्य की नीति का अधिक आदर नहीं हुआ।

कौटिल्य के अर्थ-शास्त्र को प्राप्त हुए थोड़े ही दिन हुए। वे कौटिल्य, चाणक्य और विष्णुगुप्त आदि नामों से भी प्रसिद्ध हैं। उन्होंने अपनी नीतिज्ञता के कारण ही सारे नन्द-वंश को मटिया-मेट कर दिया। चन्द्रगुप्त को नन्द के राज्य का राजा बनाकर मौर्यवंश के शासन की नींव उन्होंने डाली। उनकी नीतिज्ञता और युद्ध-कुशलता आदि का चित्र मुद्राराक्षस में खूब खींचा गया है। उनका अर्थशास्त्र ईसा से ४०० वर्ष पूर्व का माना जाता है।

कामन्दक ने अपना नीतिसार बड़ी सरल भाषा में लिखा है। कामन्दक ने राजशास्त्र बनानेवाले प्राचीन ऋषियों का नाम दिया है और शुक्राचार्य के कूटयुद्ध की उपयोगिता स्वीकार की है। निर्बल राजा के सबल शत्रु के साथ युद्ध करने में कूटयुद्ध का आश्रय लेना कामन्दक के मत में बुरा नहीं। शत्रु की सोती हुई और असावधान सेना पर आक्रमण करना भी कामन्दक की दृष्टि में बुरा नहीं।

स्मृतियों और पुराणादिकों में धर्म युद्ध ही को अधिक महत्व दिया गया है। कूटयुद्ध को लोग पाप-कर्म से कम नहीं समझते