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अतीत-स्मृति
 


अशोक ने उसे असुरों द्वारा बनवाया होगा। फा-हियान का कथन है कि अशोक के स्तूप के समीप ही एक सुन्दर संघाराम बना हुआ है, जिसमें लगभग छः सात सौ साधु रहते हैं। प्रति वर्ष दूसरे महीने के आठवें दिन वहाँ एक उत्सव होता है। उस अवसर पर चार पहिये का एक रथ बनाया जाता है। उस रथ के ऊपर पाँच खण्ड का एक मन्दिर रखा जाता है। मन्दिर बांसों का बनता है। उसके बीच में सात पाठ गज लम्बा एक बांस रहता है। वही उसे साधे रहता है। मन्दिर श्वेत वस्त्र से मढ़ दिया जाता है। पर उसका पिछला भाग चटकीले रङ्गों से रँगा रहता है। सुन्दर रेशम के शामियानों के नीचे देव मूर्तियां, वस्त्राभूषण से सजा कर रखी जाती है। रथ के चारो कोनों में चार वाक रहते हैं। उन ताकों में बुद्ध भगवान् की बैठी हुई मूर्ति स्थापित की माती है। इस प्रकार के कोई बीस रथ तैयार किये जाते हैं। उत्सव के दिन बड़ी भीड़ होती है। खेल तमाशे होते हैं और मूर्तियो पर फूल आदि चढ़ाये जाते हैं। उस दिन बौद्ध लोग नगर में प्रवेश करते हैं। वहाँ वे ठहरते है और सारी रात हर्ष मनाते है। इस अवसर पर दूर दूर से लोग आते है और उत्सव में सम्मिलित होते हैं। धनवान लोगों ने नगर में कितने ही औषधालय खोल रखे है, जहाँ दीन-दुखियों, लँगडे़-लूलो और अन्य असमर्थ जनों का इलाज होता है। उनको हर प्रकार की सहायता दी जाती है। वैद्य उनके रोगों की परीक्षा कर के औषधि सेवन कराते हैं। वे वहीं रहते हैं