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अतीत-स्मृति
 


प्रजा सुखी है। उन्हे अधिक कर नहीं देना पड़ता। शासक लोग कठोरता नहीं करते। जो लोग भूमि जोतते और बोते हैं उन्हें अपनी पैदावारी का एक निश्चित भाग राजा को देना पड़ता है। लोग अपनी इच्छा के अनुसार चाहे जहाँ आ जा सकते हैं। अपराधी को उसके अपराध के गौरव-लाघव के अनुसार भारी अथवा हल्का दंड दिया जाता है। शारीरिक दण्ड बहुत कम दिया जाता है। बार बार विद्रोह करने पर कहीं दाहिना हाथ काटे जाने का दण्ड दिया जाता है। राजा के शरीर-रक्षकों को नियत वेतन मिलता है। देश भर में जीवहत्या नहीं होती। चाण्डालो के अतिरिक्त कोई मद्यपान नहीं करता और न कोई लहसुन और प्याज ही खाता है। इस देश मे न तो कोई मुर्गी ही पालता है और न बतख़ ही। पालतू पशु भी कोई नहीं बेचता। बाज़ारों में पशु-बध अथवा मांस बेचने की दुकानें नहीं। सौदा-सुलफ़ में कौड़ियो का व्यवहार होता है। केवल चाण्डाल ही पशुबध करते और मांस बेचते है। बुद्ध भगवान के समय से यहां की यह प्रथा है कि राजा, महाराजा, अमीर, उमराव और बड़े आदमी विहार-निर्माण करते है और उनके खर्च के लिए भूमि इत्यादि का दान-पत्र लिख देते है। पीढ़ियां गुजर जाती है वे विहार ज्यों के त्यों विद्यमान रहते है। उनका खर्च दान दी हुई भूमि की आमदनी से चलता रहता है। उस भूमि को कोई नहीं छीनता। विहारों में रहने वाले साधुनो को वस्त्र, भोजन और बिछौना मुक्त मिलता है।