पृष्ठ:अतीत-स्मृति.pdf/१३५

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१२८
अतीत-स्मृति
 

अध्वर्य्यु-"गोः कलया मूल्येन क्रीणीमः"-गाय के सोलह अंशो में से एक अंश मूल देकर हम मोल लेंगे।

सोम॰-"इतोऽतिभूयः सोमो राजाऽहर्ति"-राजा सोम इससे अधिक मूल्य पाने के योग्य है।

अध्वर्य्यु-"सत्यं गोरपि विशिष्टो महिमा। पयः क्षीरसारं दध्याभिक्षानवनीतमुदश्वितं धृतम्-इत्येवमादीनि संसारोपयोगिवस्तुजातानि गोभ्यः समुद्रवन्ति" सत्य है कि सोम अधिक मूल्यवान है, किन्तु गाय की भी विशेष महिमा है। दूध, मलाई, दही, मक्खन, तक्र, घी इत्यादि अनेक प्रकार की वस्तुयें गाय से मिलती हैं।

सोम-विक्रेता-"अस्त्येतत् तथापि गोः षोड़शांशादधिकं सोमो राजाऽहर्ति"-यह सत्य है, तथापि राजा सोम गाय के सोलहवें अंश से अधिक मूल्य पाने के योग्य है।

अध्वर्य्यु पहले चार भागो में एक भाग मूल्य देकर लेना चाहते है। फिर तीन में से एक। फिर अर्धांश। फिर समूची गाय देना स्वीकार करते हैं। तब साम विक्रेता कहता है-"विक्रीतो मया सोमः"-परन्तु-"वस्त्रादिकं परितोषकमप्यहं लब्धुमिच्छामि-" मैं सोम बेचता हूँ, परन्तु वस्त्रादि पारितोषिक भी चाहता हूँ। तब विक्रेता को पारितोषिक दिया जाता और राजा सोम शकट पर लादे जाते। फिर उस प्राचीनवंश नामक याग-गृह में पूर्व द्वार से लेकर 'आहवनीय' नामक अग्निकुण्ड के