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११-सोम-याग

वैदिक समय में दो प्रकार के यज्ञ होते थे। एक तो दही, दूध, घी और पुरोडाश आदि की आहुतियो के द्वारा और दूसरा सोमरस की आहुतियों के द्वारा। प्रथम प्रकार के यज्ञ का नाम हविर्यज्ञ है और दूसरे प्रकार के यज्ञ का नाम सोमयज्ञ या सोमयाग।

हविर्यज्ञ के बाद सोमयज्ञ चला। इसका प्रमाण अथर्ववेद में है। अथर्ववेद के गोपथ-ब्राह्मण मे लिखा है कि भृगु और अङ्गिरा ऋषियों ने पहले पहल सोमयज्ञ किया।

हविर्यज्ञ अनेक प्रकार का है और सोमयज्ञ भी अनेक प्रकार का है। कृष्ण-यजुर्वेद के प्रथम काण्ड मे यज्ञों के नाम है। उसी मे उन सब की विधि भी है। किन्तु ब्राह्मण-भाग मे जो विधि है वह कुछ अस्पष्ट है। तात्पर्य यह है कि यजुर्वेद के प्रचार के समय ही सब यज्ञ जारी हुए। ऋग्वेद के समय उनका अंकुर मात्र था।

कृष्ण-यजुर्वेद के काण्ड १, प्रपाठक ६, अनुवाक ९ में यज्ञो के नाम आदि हैं। यथा-

"प्रजापतिर्यज्ञानसृजत। अग्निहोत्रं चागिष्टोमश्च पौर्णमासी-ञ्चोकथञ्चामावास्याश्चातिरात्रं" इत्यादि।