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अतीत-स्मृति
 


यत खुशबूदार होते है। इस खेल में से इन्तहा दरजे का साफ साफ और दूध के मानिन्द अर्क़ बरामद होता है। इससे उन्दा अर्क़ मैने कभी नहीं देखा। इसका ज़ायक़ा किसी क़दर तुर्शी मायल होता है। हिन्दुस्तान के मुसाफिर अक्सर इसी की नर्म शाखें रफातिश्नगी की गरज से चूस जाते है। यह बेल जङ्गलो में पाई जाती है। नीज़ इलाका बङ्गाल की झाड़ियों में भी पैदा होती है। जाबजा इसकी काश्त की जानिब खास तवज्जुह होनी चाहिए।"

डाक्टर साहब ने यह सब तो लिखा, पर सोम के प्राचीन वर्णन और गुणो को अपनी सोमलता से मिलाकर दोनों की एकवाक्यता करने का कष्ट नहीं उठाया। इसका क्या प्रमाण है कि डाक्टर साहब की सोमलता वैदिक सोमलता है। सम्भव है, आपकी लता मामूली गिलोय या उसी जाति की कोई लता हो।

पुरातत्वज्ञ विद्वानों का मत है कि शुरू में आर्य लोग हरी सोमलता को कूट कर रस निचोड़ लेते थे। या यदि हरी लता न मिलती थी तो पर्वतीय आदमियों से सूखी लता लेकर उसे पानी में भिगो देते थे। फिर उसे मलकर छान लेते थे। बाद में दूध और शहद मिला कर उसे कुछ काल रक्खा रहने देते थे। इससे वह रस कुछ नशीला हो जाता था। उसे ही वे पीते थे। उसके पीने से नशा होता था। इससे वे इस लता को एक अद्भुत गुण वाली समझते थे और उसे भक्ति भाव-पूर्ण दृष्टि से देखते थे।