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अतीत-स्मृति
 


टपकने लगते हैं। तब सोमपायी को धूल बिछा कर शय्या पर सुलाना चाहिए और पूर्ववत् दूध पिलाना चाहिए। पांचवें और छठे दिन भी यही उपचार करना चाहिए। दोनों वक्त सिर्फ दूध पिलाना चाहिए। सातवें दिन उसका मांस और त्वचा गल कर गिर जाती है। हड्डी मात्र शेष रह जाती है। पर सोमपान के प्रभाव से वह मरता नहीं; श्वासोच्छृास जारी रहता है। उस दिन गुनगुना दूध उसके अस्थि-पञ्जर पर छिड़कना चाहिए और नित्य मुलहटी और चन्दन का लेप लगाना चाहिए। यह करके फिर दूध पिलाना चाहिए। पर शरीर का मांस गल जाने से दूध उसके पेट तक पहुँचेगा कैसे और वहाँ आमाशय मे ठहरेगा किस तरह, यह समझ में नहीं आता।

आठवें दिन बड़े सवेरे ही शरीर पर दूध छिड़क कर चन्दन लेप करे। पूर्ववत् शय्या से धूल उठा ले। उस पर क्षौम वस्त्र बिछा कर सोमपायी को सुलावे। उस दिन से नया मांस उत्पन्न होने लगता है और त्वचा भी उसी के साथ निकलने लगती है। दाँत, नरब और रोम सब गिर जाते हैं। नवें दिन उसके शरीर पर अणु नामक तेल लगाना चाहिए और नाम की छाल के काढ़े से सेचन कराना चाहिए। दसवें दिन भी यही उपचार करे। तब तक त्वचा जरा कड़ी हो जाती है। ग्यारहवें और बारहवें दिन भी पूर्ववत् बर्ताव करें। तेरहवें दिन से सोलहवें दिन तक सिर्फ सोम की छाल के काढ़े से शरीर सेचन करे। सत्रहवें और अठारहवें दिन नये दाँत निकलते हैं। दाँत खूब चिकने, नोकदार और चम-