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अतीत-स्मृति
 


है शायद वे सोमलता की छुटाई बढ़ाई के अनुसार रक्खे गये हो। सुश्रुत के कथनानुसार सब नाम वैदिक हैं। पर सब के सेवन की विधि और गुण एक ही है। अब सोम का उपयोग किस तरह करना चाहिए सो सुनिए।

जिसे सोम-सेवन की इच्छा हो वह एक अच्छी जगह ढूंढ़ कर वहाँ एक त्रिवृत्त-तीन पौठ या घेरे का घर बनावे। फिर सामग्री और नौकर-चाकर लेकर वहाँ जाय। वमन और विरोचन आदि से शरीर के सब दोषो को दूर कर दे। खाना-पीना सब नियमानुकूल होने दे। फिर अच्छे महूर्त में अंशुमान् नामक सोम को वैदिक विधि से लाकर ऋत्विजों के द्वारा उसे परिष्कृत करावे-धुलवाये, छिलवाये, साफ़ कराये। यह हो चुकने पर उसका हवन कराकर मङ्गल-पाठपूर्वक घर के भीतर यथा-स्थान सोम की जड़ (कन्द) को सोने की शलाका से फाड़े। उससे जो दूध (रस) निकले उसे सोने के वर्तन मे रख कर उसमें से अन्जुली चुपचाप एक ही दफ़े में गले से उतार दे। पीते समय उस रस का स्वाद न ले; वह जीभ में न लगने पावे। फिर आचमन कर बचे हुए रस को पानी में डाल दे। यम-नियमो द्वारा चित्त-वृत्तियो को काबू में रक्खे। बोले नहीं। मकान ही के भीतर अपने इष्ट-मित्रो सहित रहे। निर्वात स्थान में रहे-जहाँ रहे वहाँ हवा न आती हो। चित्त औषधि ही की तरफ लगाये रहे। जी चाहे बैठे, जी चाहे घूमे; पर सो न जाय।

शाम को भूख मालूम हो तो भोजन करे। पर क्या भोजन